पत्नियों या प्रेमिकाओं ने जब उन्हें छोड़ा
तब उन्होंने कहा कि किताबों के सिवा तुम जो चाहे ले जा सकती हो
वे उन्हें ज्ञान देना नहीं चाहते थे
शाम ढलते ही न्यूज चैनल्स पर बहस करते संपादकों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों का पारिवारिक जीवन अच्छा नहीं है - चर्चा का विषय कोई भी हो उनकी बातों से मुझे ऐसा लगता है। उनकी बातों में उम्मीद का एक अंश भी नहीं है। मैं सोचता हूँ कि कैसे नाउम्मीद हो सकता है वह आदमी समाज को लेकर जिसका पारिवारिक जीवन अच्छा हो। लेकिन संयोग से समय ऐसा है कि जिसमें उम्मीद सिर्फ राजनेताओं के पास है।
पत्नियाँ नाउम्मीद हैं
प्रेमिकाएँ नाउम्मीद हैं
कवि नाउम्मीद हैं
वे एक-दूसरे को छोड़ रहे हैं
अपनी-अपनी किताबें
अपने-अपने पास रखकर